जेब भराई
         
              आज कल एक प्रथा या रिवाज कह लें, हमारे समाज में तेजी से फैल रही है।अब आप सोच रहे होंगे की ये किस प्रथा की बात कर रहा है मुझे तो सारी प्रथाओं के बारे में पता है और हो भी क्यों न मैं एक सरकारी अफसर जो हूं जो इस भेड़ चाल भरे समाज में बहुतों कोशिशों के बाद यहां तक पहुंच पाया है।तो मैं आप को बता दु इस प्रथा के जन-दाता भी ये ही लोग ही हैं जो अपने आप को अफसर कहलवाने में गर्व महसूस करते हैं। ये प्रथा नई नहीं है लेकिन हाल के दिनों में इसने बहुत सम्मान पाया है इन अफसर कहे जाने वाले​ लोगों से।
          इस नई प्रथा का नाम‘जेब भराई' है।मुझे भी कहा पता होता इसके​ बारे में,अगर उन नौकरशाहों को नहीं देखा होता इसका सम्मान करते हुए।अभी कल ही की बात है मुझे इसके दर्शन हुए। मैं सड़क पर जा रहा था कि अचानक सड़क पर इक भीड़ ने मुझे रोक लिया और बोली रे मुर्ख कहा जा रहा है मुझे बिना देखे हुए।मैं पास गया तो देखा कुछ अफसर कहे जाने वाले लोगों के साथ कुछ जोशिले युवा खड़े थे जो नियमों के पालन में अपनी तौहीन समझते हैं और समझे भी क्यों न ‘जेब भराई' की रश्म उनका साथ जो देती है।पिछले १०० सालों में ये ही एक प्रथा है जिसका विरोध किसी ने नहीं किया और करें भी क्यों हमारा देश ‘भारत' तो संस्कृति, सभ्यता और प्रथाओं​ का देश हैं, ऐसा कह कर बचने वालों की संख्या कम थोड़ी है।
          आप सोच रहे होंगे ये कैसी प्रथा की बात कर रहा है।हां जी मैं सच कह रहा हूं,अगर इसके दर्शन करने हो तो चलें जायें किन्हीं सरकारी दफ्तरों में, जहां इसका यौवन आप को भी अपनी तरफ आकर्षित करने लगेगा।ये रस्म भी अजीब है इसके लिए किसी मुहूर्त की जरूरत ही नहीं होती​,बस मां लक्ष्मी की आप पर कृपा दृष्टि रहनी चाहिए बाकी ये समझ लिजिए ये आप ही की है।
ये रस्म भी अजीब तरीके से सम्पन्न की जाती है,कभी टेबल के ऊपर से तो कभी नीचे से,कभी दायें से तो कभी बायें से,कभी उसके हाथ तो कभी किसी और के हाथ, और तो और इसमें कपड़े में जेबों का रोल भी अधिक होता है,जितने ज्यादा जेब़ उतनी ज्यादा "जेब़ भराई"।कुछ दिन पहले तो इसका सामाजिक रूप भी देखने को मिला,जब शर्मा जी हंसते हुए मेरे पिता जी से बोलें की उन्होंने अपनी बेटी की शादी एक सरकारी अफसर से की है जिसके नीचे की कमाई बहुत ज्यादा थी।ये वो ही शर्मा जी हैं जिन्हें हंसना गुनाह लगता है , लेकिन जेब भराई की रस्म उन्हें भी अच्छी लगती है।