कुछ गाती,कुछ रह-रह जाती
जीवन-ताल की कहानियाँ
कुछ लहरों के संग मंडराती
ये तालाब की मछलिया

कुछ गाती,कुछ रह-रह जाती
जीवन-ताल की कहानियाँ
छोटी-बड़ी,बड़ी-छोटी
दिन रात सुनती बानियाँ
कुछ लहरों के संग मंडराती
ये तालाब की मछलियाँ।

जीवन आश्रित बन जाती
एकैक धारा पर ज्यो नर की
सम आश्रित सीख हुई इनको
नित देख कर्म यू ही झख की

लघु-से-दीर्घ,दीर्घ-से-लघु
ज्यों भक्ष मत्स्य बन जाती
मानव सम भी यूं बना समयकर
बात यही ये मत्स्य बताती

कुछ गाती,कुछ रह-रह जाती
जीवन-ताल की कहानियाँ
कुछ लहरों के संग मंडराती
ये तालाब की मछलियाँ।

निष्कपट मनुज नहीं इन-सा
मानो उपकार पितृगुण हो
या समझ लो इनमें यूं बहती
कल्याण-लाल भर नलिका हो

आकार फँसना,फँसकर मरना
यू काल के लाल हो बाल ये मीन
नित भूख धरा की हर ले ते
तज प्राण ये अपनी,लिए सब दीन

कुछ गाती,कुछ रह-रह जाती
जीवन-ताल की कहानियाँ
कुछ लहरों के संग मंडराती
ये तालाब की मछलियाँ।

आश्रय छिन्न-भिन्न कर दें
मनुज नहीं उपकारी हैं
अपनी जिह्वा के वस फँसकर
ये बढ़ावत ज्यों महामारी हैं

यूं दृष्टि नहीं चढ़पाती क्या
उपकार जो मत्स्य ये करती हैं
आक फँसकर,फँसकर मरकर
ये नाटक सा जो करती हैं

ताकि मुक्ति ले जन सके
यूं जीव हत्या से तजकर
सुखमय जीवन व्यतीत करे
इस देवलोक में समय यूं कर

फिर भी कुछ गाती,कुछ रह-रह जाती
जीवन-ताल की कहानियाँ
कुछ लहरों के संग मंडराती

ये तालाब की मछलियाँ।

जीवन में इनके बेड़ियाँ
ये जलकुंभी सम फणधर हैं
जिनको न तज ये भाग सके
तज प्राण ये देती छणभर हैं

वरण हुआ तालाब का ज्यों
नद्य सिंधु घर जाती हैं
जो पितृ हिमालय को तजकर
यूं नाथ पारावार आती हैं

ये सरिता जो नगपति को तज
आश्रु रूप उफनाती हैं
कुछ बधाएं अवरोध अचल
जो पथ में ही पड़ जाती हैं 

उस पथ को छोड़ नव्य पथ से
येँ नद्य उदधि मिल जाते हैं
तब नव्य तड़ाग-सा यह जीवन
यूं वसुधा पर खिल जाते हैं

तब नद्य रूप दुल्हन से तजकर
मत्स्य अमर बन जाती हैं ।
जो कुछ गाती,कुछ रह-रह जाती
जीवन-ताल की कहानियाँ
कुछ लहरों के संग मंडराती
ये तालाब की मछलियाँ।